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बेबी शावर

भारतीय महिलाओं के जीवन में गोद भराई की रस्म एक महत्वपूर्ण और विशेष अवसर है. भारत के विभिन्न भागों में इस रस्म को विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है. आज के दौर में ये रस्म थोडा मॉडर्न टच लिए हुए बेबी शावर के नाम से मनाई जा रही है. गोद भराई या बेबी शावर  के विषय में और जानने के लिए आगे पढ़ें:

गर्भावस्था एक महिला के जीवन का एक विशेस समयकाल होता है. जैसे ही महिला गर्भवती होती है उसे सम्पूर्ण नारीत्व प्राप्त होता है और उसे ये नयी जिम्मेदारी उठाने के लिए सभी के आशीर्वाद की जरुरत होती है.  होने वाली माँ और उसके गर्भस्थ शिशु को शुभाशीष देने के लिए भारत में गोद भराई की रस्म मनाई जाती है. गोद भराई का अर्थ है आने वाले शिशु की आशा में होने वाली माँ की गोद को खुशियों से भरना. गर्भवती माँ की गोद में फल, मिठाई, चावल, नयी साड़ियाँ आदि भरे जाते हैं और उसके और उसके शिशु के लिए मंगल कामनाएं की जाती हैं.

विभिन्न नाम किन्तु एक ही उद्देश्य

हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों का एक एकीकृत रूप है. इसी कारण देश अलग – अलग भागों में गोद भराई को अलग – अलग नामों से मनाया जाता है. उत्तर भारत में यह रस्म गोद भराई, महाराष्ट्र में दोहल जीवन, बंगाल में शाद, तमिलनाडु में वल्काप्पू तथा दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों में सीमान्तम के नाम से जानी जाती है.

हालांकि इन सभी का एक ही उद्देश्य है जो है होने वाली माँ को आशीर्वाद देना और उसे स्पेशल फील करवाना. ये रस्म एक सामाजिक समारोह है जिसमे मुख्यतः परिवार की महिलाएं और सखी – सहेलियां सम्मिलित होती हैं.

रस्म मानाने का उचित समय

गोद भराई की रस्म मुख्य रूप से गर्भावस्था के सातवें या नौवें महीने में मनाई जाती है. इस समारोह के लिए विषम संख्या वाले महीनो को चुना जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है की ऐसा करने से गर्भवती माँ और शिशु दोनों को सौभाग्य प्राप्त होता है. हालांकि गोद भराई समारोह के लिए गर्भावस्था का सातवाँ महीना सबसे सुविधाजनक और सुरक्षित रहता है क्योंकि इस महीने तक शिशु सुरक्षित और स्थिर अवस्था तक पहुँच चुका होता है.

इस अवसर का आयोजन गर्भवती महिला के सातवें महीने के अंत में ससुराल या मायके वालों के द्वारा, जहां भी वे गर्भावस्था के दौरान रहती हैं, किया जाता है. मुख्य रिश्तेदार और मित्रगण को निमंत्रण दिया जाता है और सभी मिलकर शिशु के आगमन की खुशियाँ मानते हैं और समारोह को एन्जॉय करते हैं.

रस्म और रिवाज

इया रस्म के दौरान गर्भवती महिला के ऊपर उपहारों की झड़ी लग जाती है. आये हुए मेहमान शगुन के रूप में अपने आशीर्वाद और शुभकामनाओं के साथ विभिन्न उपहार भी लाते हैं. उपहारों के रूप में वे गर्भवती स्त्री और उसके शिशु को अपनी मंगलकामनाये देते हैं. गर्भवती महिला को सुन्दर कपड़ों और गहनों से सजाया जाता है और सोलह श्रृंगार की हुई नयी नवेली माँ बहुत खूबसूरत लगती है ऊपर से गर्भावस्था का निखर और उसकी ख़ुशी उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगते हैं. बड़े बुजुर्ग और अनुभवी महिलाये अपने आशीर्वाद के साथ होने वाले मम्मी – पापा को बहुत से उपयोगी सलाह और सुझाव भी देते हैं.

कुछ जगहों पर ये रिवाज होता है कि गर्भवती महिला के कान में ये बोला जाये की जल्दी ही उसकी गोद में एक स्वस्थ और हँसता खेलता शिशु होगा. ऐसा करना माँ और बच्चे दोनों के लिए बहुत शुभ मन जाता है. कुछ लोग इस रस्म के दौरान पूजा, मन्त्रों का जाप और हवन आदि भी करवाते हैं.

होने वाली माँ को बुरी नजर से बचने के लिए अन्य महिलाएं उसके माथे पर कुमकुम लगती हैं और उसकी नजर भी उतारती हैं. सभी रस्मों के बीच नाश्ते और दावत का भी आयोजन किया जाता है.

मस्ती सेगमेंट

कुछ जगहों पर पारिवारिक परम्पराओं के साथ आयोजन को आनंददायक बनने के लिए डांस और कई तरह के गेम्स का भी आयोजन होता है जिससे वहां उपस्थित हर व्यक्ति एन्जॉय कर सके.

आप अपने आयोजन में जो भी रीति – रिवाज शामिल करें या तरह – तरह के अन्य आयोजनों से इस समारोह को रुचिकर बनाये, इसका मुख्य मकसद प्रेग्नेंट माँ और उसके अन्दर पल रहे बच्चे को शुभाशीष देना ताकि महिला जल्दी ही एक सुन्दर और स्वस्थ शिशु को बिना किसी परेशानी के जन्म दे सके और वे दोनों ही स्वस्थ रहें.

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